Sunday, May 31, 2009

अंगडाई

एक

अभी तो उठा के हाथ ,
अंगडाई ले भी न पाये थे ,
जिस्म की गर्मी का तसव्वुर ,
निगाहों में छा गया ।
ओंठ जलने लगे ,
बदन छूने के ही ख्याल से ,
सारा आकाश पिघलकर
बाहों में आ गया ।

दो

अभी तो उठा के हाथ,
अंगड़ाई ही ली है,
ईमान डोल गया ।
जलवा देख लिया तो ,
सब्र बिखर जाएगा ।
अभी चाँद बादलो का खोल
ओढ़ तरसे है ,
निकलते ही कतरा कतरा
पिघल जाएगा।

No comments:

Post a Comment