Monday, June 1, 2009

गरीब उत्थान कार्यक्रम

गरीबों के उत्थान के लिए
मेट्रो शहर के आलीशान
पाँच सितारा होटल के
भव्य कांटिनेंटल हॉल में
गरीब उत्थान समिति की और से
एक विशाल गोष्ठी का आयोजन था।

शहर के प्रतिष्टित व्यक्ति
अभिजात्य वर्ग के प्रतिनिधि
कुछ बुद्धिजीवी बड़े अफसर
माननीय मंत्री जी की अध्यक्षता में
गरीबी से निबटने का हल ढूँढने के लिए
विभिन् योजनाओं पर
विचारों का आदान प्रदान एवं
विश्लेष्ण क्र रहे थे।

वह जो नही दिखाई दे रहा था
गरीबी का प्रतिनिधित्व करता
नजर नही आ रहा था
ढूंढें से भी नही मिल रहा था
वह था -एक गरीब ।

चपरासी एक बिचारा गरीब था
अपने कार्य में व्यस्त इधर उधर
दौड़ता हुआ सबकी द्धांत खा रहा था
गोष्ठी को मुह चिडाता सा लग रहा था।

गोष्ठी के बाद
शानदार डिनर का आयोजन था।
कीमती शराब ,कीमती व्यंजन
चिकन परोसे हुए थे
पैसा पानी की तरह
अमीरी पर लुटाया जा रहा था।
गरीब उत्थान कार्यक्रम का जश्न
मनाया जा रहा था ।

गोष्ठी समाप्त होने पर
मंत्री जी मुस्कराते हुए
सबका आभार प्रगट करते हुए
गाड़ी में बैठे ।
गाडी गेट से निकली ही थी
की झटका खाकर , रुक गयी ।

कुछ बच्चे कुरे करकट में से
प्लास्टिक बीनते हुए
यकायक गाड़ी के सामने आ गये ।
मंत्री जी की झुंझलाहट हद पार कर गयी ।
क्रोध भरा स्वर गूँज उठा -
क्या नानसेंस है -
कहाँ से चले आते हैं -
ये गरीब साले मरते भी नहीं ,
गरीब हैं ,गरीब बनकर ही रहेंगे ।

लग रहा था
कुछ देर पहले
गरीबी से निबटने के ,
गरीबी का हल ढूँढने के
विचारों का फोकस
सीमित होकर रह गया था ।
जिंदगी पर भारी पडती -गरीबी
गोष्ठी की कोरी बातें बनकर रह गयी थीं ।
गरीबो के उत्थान के लिए
उनके हालात से मुकाबला करने का
एक भी प्रयास
सार्थक होता नही लग रहा था।
गुलाब की महक
कांटो भरी चुभन से
आह भरती नज़र आ रही थी ।


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