Tuesday, June 2, 2009

अकेलापन

छुट्टियों में फुर्सत में बैठ
घुलमिलकर सुख -दुःख बांटने को,
इस बार होली में फ़िर से
एक नई उमंग जवान हुई ।
संग फाग खेलने को दिल
एक बार फ़िर से मचल उठा ,
विदेश से आने के लिए
फ़ोन पर बच्चों से थी बात हुई ।

तेजी से बदलते आधुनिक युग में
अब फुर्सत है किसको
वहां आकर घुलमिल सबके संग
रंगों से होली खेलने की ।
होली खेलने के तरीके भी अब
सरल हुए हैं -बच्चों ने कहा ,
परदेस में छुट्टी नहीं मिलती कोई
दिवाली की या होली खेलने की ।


मोबाइल इन्टरनेट ई-मेल की
अत्याधुनिक तकनीको ने ,
सात समुन्दर पार रहते हुए भी
दिलों की दूरियां घटा दी हैं।
इस वेब कैमरे को कंप्यूटर से
जोड़ लेना -मम्मी पापा ,
मिलजुलकर होली मनाएंगे
दिल को तस्सली दी है ।

पुरानी धुंधलाती यादों का मोह
एक बार फ़िर से उभरा था ,
होली के ही आते ही मन
अनेक भावो से बिखरा था ।
हमारे तन्हा दिल में
कमरे की नीरवता छाई थी,
उम्रों के बीच के रंगों का रंग ,
अलग ढंग से छितरा था ।

स्वयं को तस्सली देते हुए
मन का सुख -दुःख बांटने को ,
आनन फानन में वेब कैमरे से
कंप्यूटर को जोड़ दिया।
कैमरे से स्क्रीन पर उभर आई ,
बोलती गाती तस्वीरों ने ,
कमरे की नीरवता ,
दिल की तन्हाईयों को
पीछे छोड़ दिया ।

वक्त के साथ साथ जीने की
मान्यताएं भी कैसी बदली हैं ,
हजारों मील समुंदर पार की दूरियां ,
पल में कैसी सिमटी हैं ।
नाना -नानी ,दादा -दादी
हैप्पी होली से दिल भर आया था ।
नाती -पोतों को गले लगाने की
आतुरता फ़िर से पसरी है ।

सब मिलजुलकर नये अंदाज़ में
होली खेल रहे थे पर
ह्रदय में उम्र की तन्हाईयों का
था गुलाल बिखर रहा ।
ठहरी हुयी सुन्न भावनाओं का
सतरंगा इन्द्रधनुषी दर्द
सूनी आंखों से श्वेत जलधार सा
था टपटप बह रहा ।

No comments:

Post a Comment