Tuesday, June 9, 2009

बहुत याद आती है

शहर जब उदासियों से घिरा होता है ,
गाँव की हर बात याद आती है ।
दरो दीवार ,चौखट ,वह आँगन ,फ़िर तो
घर की बहुत याद आती है ।

ए सी कमरे की बिजली गुल होने पर ,
मोड़ पर खडे, पीपल की छांव याद आती है ।
बारिश में, सड़को पर हुए, जल भराव को देख ,
गाँव में बहते नाले की ,बहुत याद आती है ।

बाज़ार और माल्स ,जब, हड़ताल पर होते हैं ,
मूली के परांठों और खिचडी की ,बहुत याद आती है ।
सामने पार्क में खेलते ,किसी बच्चे को गिरता देख ,
माँ के स्नेहमयी आँचल की ,बहुत याद आती है ।

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