Sunday, May 31, 2009

अंगडाई

एक

अभी तो उठा के हाथ ,
अंगडाई ले भी न पाये थे ,
जिस्म की गर्मी का तसव्वुर ,
निगाहों में छा गया ।
ओंठ जलने लगे ,
बदन छूने के ही ख्याल से ,
सारा आकाश पिघलकर
बाहों में आ गया ।

दो

अभी तो उठा के हाथ,
अंगड़ाई ही ली है,
ईमान डोल गया ।
जलवा देख लिया तो ,
सब्र बिखर जाएगा ।
अभी चाँद बादलो का खोल
ओढ़ तरसे है ,
निकलते ही कतरा कतरा
पिघल जाएगा।

वायदा

आज की बात पर
कल का वायदा क्या करे
आज खिली धूप है
कल खिले न खिले ।
जमाना बेताब है
करवटे बदलने के लिए
आज दिल मिले हैं
कल मिले न मिले ।

उम्र भर साथ रहने का
दम भरते थे
चले गये खबर नहीं
अब मिले न मिले ।
घर का सूना कोना
गले लिपटकर रो रहा
सब मुसाफिर हैं यहाँ
फिर मिले न मिले।

बतियाँ

हमारे सामने हमारी बतियाँ
तुम्हारे सामने तुम्हारी बतियाँ
कितनी मीठी लगती हैं
उनकी ऐसी खुशामदी बतियाँ ।

उनके सामने हमारी बतियाँ
हमारे सामने उनकी बतियाँ
कलेजा चीर देती हैं
उनकी ऐसी कटारी बतियां ।

कभी हैं शोला
कभी हैं शबनम
नहीं है मरहम उनकी बतियां
न वो हमारे न वो तुम्हारे
मतलबी हैं उनकी बतियां ।

Friday, May 29, 2009

में चीनी मिटटी का प्याला

मैं चीनी मिटटी का प्याला ,
तुम चाय मीठी मीठी सी
हर सुबह सवेरे अपने खालीपन को ,
तुमसे भरता हूँ।
तुमसे मिलने को उत्सुक हो सब ,
याद मुझे ही करते हैं । मेरी ठिठुरन को तुम अपनी
गर्मी से सिहरा जाती हो ।
कितना भी दूर रहूँ तुमसे
तुम्हारी खुशबू से ही महकता हूँ।
रिश्तों का मतलब क्या होता है ,
मैंने तुमसे जाना है ।
तुम्हारे स्पर्श के अनुमान से ,
मैं बौराया रहता हूँ ।

तुमसे मिलने की धुन में मैं ,
खनखन बजता रहता हूँ ।

डर एक लगा रहता है मुझको ,
टूट न जाऊं गिरकर मैं ।
फ़िर भी रूप बदलकर मैं ,
तुम्हे गले लगाये रहता हूँ ।
मेरे दायरे में क़ैद हुई तुम ,
छलकी छलकी जाती हो ।
जितना भी तुमसे भरता हूँ मैं ,
उतना ही रिक्त हुआ रहता हूँ।

Wednesday, May 27, 2009

खिलौना कार

हर सुबह अखबार में सब
अपनी अपनी पसंद के कोलम
सबसे पहले देखते हैं
कोई स्पोर्ट्स कोलम
कोई शेयर मार्केट न्यूज़
कोई फ्रंट न्यूज़
कोई विज्ञापन

डेढ़ वर्ष का नन्हा सा बालक
बडी उत्सुकता से अखबार खोलता है
कोई और पहले पढने लगे तो रोता है
अखबार लेता है खोलता है
विज्ञापन में छपी कारो को
देखकर बहुत खुश होता है
अपनी मम्मी की कर जैसी स्विफ्ट कार
छपी देखकर कहता है मम्मी तार

पापा जैसी होंडासिटी देखकर
कहता है पापा तार
अपने नाना की जैन जैसी छपी कार
देखकर कहता है नानू तार
बाकी सब छपी हुईं कारे
उसके लिए हैं अन्त्ल तार
कारो की तस्वीरे देखकर
उसके मासूम चेहरे पर
अनोखी चमक आ जाती है
वह अपनी खिलोनो वाली कारो को
उठाकर लाता है
जितनी कारे समाचारपत्र में
छपी हुई देखता है
उतनी ही खिलौना कारो को
एक एक kar लाइन में लगाकर खुश होता है
जैसे उन्हें पार्किंग में पार्क क्र रहा हो
उसके चेहरे की खुशी
उसकी आँखों की चमक
देखने लायक होती है
जब नन्ही हथेलियों से
तालियाँ बजाकर वह खुश होता है
जैसे उसे कोई अकूत खजाना मिल गया हो

असलियत

वह जो उचाईयों पर उचाईयां चढ़ता रहा
ख़ुद को बेहतरीन समझने का गम उसे खा गया
बदलते वक्त ने असलियत का आईना दिखाया तो
एक अदना सा इंसान बनकर रह गया

वह ख़ुद को मुकम्मल से कम नही समझता था
सच के करीब होकर अधूरा सिमटकर रह गया
अपने होने को न होने से अलगाता हुआ
कमजोर इंसान बनकर रह गया

अब तो ऐसे जैसे किसी तपते पहाड़ पर यकायक
घने कुहरे में हल्की बूंदें बरस रही
हर तमन्ना हर इच्छा बुलंदियों को छूती हुई
कभी आग थी अब पानी पानी हो रही

Saturday, May 23, 2009

में क्या करता हूँ

आईने ने तो बहुत खूबसूरत
लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे
मैंने किसीको यह हक न दिया

वक्त ने भी मेरी तनहाइयाँ
पहचान ली थी
मेंरे गरूर ने
मुझे किसी आँख में
रहने न दिया

रह रह कर कईं सिलसिले
याद आ रहे हैं आज
काश ख़ुद को भूले
किसी महफिल में
राह लिए होते

आज वक्त ही वक्त है
काटे से नहीं कट ता
कभी मोहल्लत मिल्ली होती
अपनों से गले मिल लिए होते

हुनर

उनकी बातों में
न जाने क्या बात है
सबको अपना बनने का
हुन्नर आता है

अजब फनकार हैं
आँखें उनकी
पत्थरों में आइयेना
तलाशने का हुन्नर आता है

धुप में सूखती
उनकी जुल्फों को देख
मौसम को भी अपने में
बदलाव नज़र आता है

अजाब रोमानी है
उनकी जुदाई की शेह भी
की जिगर का दर्द भी
गुलज़ार नज़र आता है