Friday, May 28, 2010

फिसल जाती है

मुट्ठी से रेत फिसल फिसल जाती है
तकदीर पल भर में बदल जाती है ।
आदमी सोता ही रह जाता है
रात अल-सुबह में बदल जाती है।
बोतल में बंद शांत बनी रहती है
बाहर आते ही छलक जाती है।
गले से नीचे उतरती है जैसे ही
तबियत शराब की मचल जाती है।
जिंदगी का क्या है जब बहलती है
जरा सी बात से बहल जाती है।

1 comment:

  1. रेत का फिसलना..तकदीर का बदलना..शराब का मचलना..जिन्दगी का बहलना............जरा सी बात है.......क्या खूब कहा है....बेहद उम्दा रचना.....जो भी पढेगा पसन्द करेगा...शुभकामनाएं।

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