Thursday, May 27, 2010

अपनी बेकद्री का क़र्ज़

पानी की बर्बादी व तबाही यूँ ही अगर होती रही
जरूरत भर पानी को इन्सान मोहताज़ बन जायेगा।
पानी मयस्सर नहीं होगा खुश्की बढती जाएगी
धरती का अंत: भी जल विहीन बन जायेगा।
धरती के अन्दर पानी का जलस्तर गिरता जायेगा
सम्र्सिब्ल जेत्प्म्प का हलक सुख जायेगा।
पानी मिलेगा न पीने को न मिलेगा जीने को
पोखरे नदियाँ ताल सब सुखा पड़ जायेगा।
अपनी बेकद्री का क़र्ज़ पानी कुछ यूँ चुकाएगा
सब तरसेंगे पानी को पानी बस आँखों में रह जाएगा।

No comments:

Post a Comment