Wednesday, June 16, 2010

तलवार से नाख़ून नहीं कटते

तलवार से नाख़ून नहीं कटते
तपते सहरा में बादल नहीं बरसते ।
नासूर बन जाते हैं धीरे धीरे
जख्म सुईं से कभी नहीं सिलते ।
चार तिनकों की छत के नीचे
तेज बारिश धूप से नहीं बचते ।
गम में टूटकर बिखर जाते हैं
दिल वह कभी नहीं सम्भलते ।
जिनके हौसले बुलंद होते हैं
उनके क़दम पीछे नहीं हटते ।
जो अपना नसीब खुद लिखते हैं
वह किसी शख्श से नहीं डरते।
नेकियाँ करते रहने से सदा
अच्छे दिन कभी नहीं बदलते ।

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