Friday, July 9, 2010

वह पसीना सुखाता है.

किसी को छाहं में पसीना आता है
वह धूप में खड़ा पसीना सुखाता है।
अपने जिस्म से बाहर निकल के
वह तमाम शहर के काम आता है।
किसी के अदब से पीछे नहीं हटता
चलते चलते रस्ता छोड़ जाता है।
इंतज़ार उसका किया करते हैं सब
वह प्यास के लिए कतरा बन जाता है।
करूं क्या उसके भटकने का जिक्र
वह हर कूचे से रिश्ता निभा जाता है।

1 comment: