Wednesday, October 27, 2010

एक अरसे तक तेरे लिए पत्थर तराशे थे

एक अरसे तक तेरे लिए पत्थर तराशे थे
दीवार छत तेरे फर्श ऐ घर तराशे थे।
तारीख साज़ बनकर के मैंने तो तेरे
साल महीने हफ्ते दिन हर तराशे थे।
बेहद मुश्किल काम था मैंने पर किया
उदासियों के तेरी मैंने पर तराशे थे।
फलक खाली देख के ख्याल आया
कहाँ गये दर्द जो मिलकर तराशे थे।
समुंदर भी सहमा सा है वह बहुत
किनारे जिसके तूने घर तराशे थे।
घर बदलते वक़्त तूने यह नहीं जाना
मैंने इस घर के भी पत्थर तराशे थे।
खुदा महफूज़ रखना ग़ज़ल को मेरी
संग तेरे जिसके मैंने अक्षर तराशे थे।

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