Wednesday, October 13, 2010

महफ़िल में हर कोई निखरा लगता है

महफ़िल में हर कोई निखरा लगता है
बाद महफ़िल के वो बिखरा लगता है।
बेख्याली में चलता ही चला जाता है
होश आते ही वो थका सा लगता है।
इश्क करोगे तो दोस्त बिछड़ जायेंगे
किस्सा भले ही ये पुराना लगता है ।
इश्क के दरिया में कूद जानेके बाद
सिलसिला आज भी नया लगता है।
चेहरा बदलते ही आस्था बदल जाती है
जाने क्यों इंसान डरा डरा सा लगता है।
अँधेरे में बाहर जब शोर बहुत मचता है
घर में पहले वो उजाला करता लगता है।
सोने का सिक्का उसे गूंगा कर देता है
जो हर बात पर बहुत बोलता लगता है।

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