Tuesday, February 22, 2011

तेरी रेशमी साड़ी का पल्लू जब कंधे से ढलका जाता है
उमंग जवान हो उठती है मन हुलस हुलस हुलसाता है।
बिंदास हंसी के घुंघरू बाँध तुम छम छम करती आती हो
जलतरंग की सुरीली धुन सुन के मन चंचल हो जाता है।
भीगे बालों की सोंधी सुंगध साँसों को महका जाती है
वासन्ती तन का स्वर्णिम रोयाँ अंतस सिहरा जाता है।
मैं इन्द्रधनुष बन जाता हूँ तुम सारा आकाश होती हो
वर्षा रिम झिम तुम होती हो मन झील बन इतराता है।
पुष्पित सुरभित अमराई पर कोकिला तान सुनती है
रस अलंकार छंदों में बंध मन प्रणय गीत सुनाता है।
तुम्हारे अनुपम स्पर्शों से ह्रदय चन्दनवन हो जाता है
अमृत सा मधुर मिलन तन मन पुलकित कर जाता है।

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