Thursday, March 31, 2011

रोमांच अपने शबाब पर था -निखार पूरा गुलाब पर था। मेरे ओंठो पर सजा तबस्सुम- महका उसके जवाब पर था। बहक गया मैं करता भी क्या- नशा अपने शबाब पर था। मुझे होश में रखने का भी- जिम्मा सारा शराब का था। आधी रात भी चाँद न दिखा- वहम अपने ही ख्वाब पर था। मुश्किल था काम का करना- ध्यान तो सारा दबाब पर था।

No comments:

Post a Comment