Saturday, April 2, 2011

समंदर कभी दर-बदर नहीं होता- मेरे फन का अब ज़िक्र नहीं होता। जितने भी सजदे करने हैं करो -आदमी खुदा मगर नहीं होता। कभी खेले थे नाव से कागज़ की -ऐसा खेलना उम्र भर नहीं होता। भटकता फिरता है गली में तन्हा -अपना जिस का घर नहीं होता। खज़ाना चाहे कितना भी मिल जाये- उस से हर दिल मुअत्तर नहीं होता। पास तुम हो तो पास गम नहीं होता -मुहब्बत को भी फिर सब्र नहीं होता। होता रहे दुनिया में जो भी होना है- हम उस मकाम पे हैं असर नहीं होता।

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