Tuesday, December 27, 2011

मेले की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती
जल्दी में कभी दिल से कोई बात नहीं होती।
वो जो हो जाती है जेठ के महीने में
बरसात वो मौसमे -बरसात नहीं होती।
चुराते दिल को तो होती बात कुछ और
नज़रें चुराना यार कोई बात नहीं होती।
डर लगने लगता है मुझे खुद से उस घडी
पहरों जब उन से मेरी मुलाक़ात नहीं होती।
वो मैकदा ,वो साकी वो प्याले अब न रहे
अंगडाई लेती अब नशीली रात नहीं होती।
आना है मौत ने तो आएगी एक दिन
कोई भी दवा आबे -हयात नहीं होती।


2 comments:

  1. वाह बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां हैं

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  2. फ़ोंट का साईज़ थोडा और बढा देने से पाठकों को सुविधा होगी सत्येंद्र जी । आने वाले वर्ष के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं

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