Monday, January 9, 2012

भूलने का सबक

जो कुछ भी हुआ ,उसे भूल जाओ!--
पत्नी मुझे दिलासा दे रही थी--
बीती बातें याद रखने का कोई औचित्य नहीं है।
पास खड़ी नन्ही बिटिया कभी मुझे कभी अपनी
मम्मी को टुकुर-टुकुर निहार रही थी।
अरे! तुम्हे क्या हुआ, मेरी बच्ची ?-
हम दोनों के मुंह से यकायक निकला।
-हमें टीचर स्कूल में सिखाती है कि हमे कुछ भी
नहीं भूलना चाहिए। मम्मी जब भी मैं कोई बात
भूल जाती हो ,तुम मुझे डांटती हो। कहती हो-
तुझे कुछ भी याद नहीं रहता।मेरी स्मरण शक्ति बढ़ाने
के लिए ब्राह्मी भी खिलाती हो। वह कुछ पल रुक कर बोली-
अब मम्मी आप सबकुछ भूलने को कह रही हैं ! क्यों पापा?
उसके प्रश्नवाचक चेहरे को हम तकते रह गये थे।
मैं सोच रहा था जो उसके कोमल मुंह से निकला था-
सब सच था।-- एक उम्र होती है ,जब हम सीखते हैं पढ़ते हैं तो
सबकुछ याद रखना चाहते हैं। बार बार भगवान से प्रार्थना
करते हैं,की हमारी स्मरण शक्ति कमज़ोर न हो।
जैसे जैसे उम्र बढती है-जीवन में दुःख भरे एवम कटु
प्रसंग आते हैं , तब हमे अनुभव होता है की भूलना,याद रखनेसे भी
अधिक मूल्यवान होता है ।ईश्वर ने मनुष्य को दुखों से छुटकारा
पाने की जो शक्ति दी है,वह अनुपम है !अमूल्य है!
समय धीरे धीरे सबकुछ भुला देता है। नित्य ऐसी बातें होती हैं,
जिनसे दिल को आघात पहुँचता है। यदि हम इन आघातों को न भूलें
तो किसी बड़े मानसिक आघात से फट पड़ें।
नन्ही बच्ची ,जिसे अभी दुःख का अर्थ ही नही पता -उसे भूलने
के विषय में कैसे समझाए ?
तुम्हारी टीचर ठीक कहती है बेटा भूलने का कोई सबक नहीं होता
हमे कुछ भी नहीं भूलना चाहिए ,तुम्हारी मम्मी तो ऐसे ही कह रही थी।
-सच !!!--उसकी आँखों से प्रसनता बरस रही थी।

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