Saturday, May 5, 2012

ऐसा लगा दिल तुमसे, फिर कहीं और न लगा
घर में,किसी महफ़िल में, किसी ठौर न लगा।
मिलनसार,खुश सोहबत ,शादबाश होकर भी
दिल तन्हाई में तो लगा,फिर कहीं और न लगा।
तुमको तो मिलते रहे ,चाहने वाले हर क़दम
हमारे हाथ मुहब्बत का फिर वो दौर न लगा।
अपना अफ़साना ख़ुद की तरफ मोड़ दिया मैंने
तुमसे मिलने का जब कोई फिर तौर न लगा।
मेरे ज़हान में ख़ुदा बन्दों में ही तो बसता है
यह समझने में मुझे वक्त फिर और न लगा।

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