Thursday, June 28, 2012

मेरे बगैर, अब कोई सहर नहीं होती
तन्हाइयों की कोई उम्र नहीं होती।
बहुत दिलकश है, शहर मेरा लेकिन
मेरे हाल की उसको ख़बर नहीं होती।
उतर गया नशा, गमे फ़िराक का अब
दर्द की दिल में, अब गुज़र नहीं होती।
दहक उठता था बदन, जिसे देख कर
छूने से भी उसके अब सिहर नहीं होती।
घेरे हुए रहते हो, मुझे हर वक्त ही क्यों
सच कहें,मुहब्बत इस क़दर नहीं होती।
ख़ास खुशबु से, महक उठती महफ़िल
ख़ुदकुशी दिल ने, की अगर नहीं होती।






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