Thursday, June 28, 2012

मेरे बगैर, अब कोई सहर नहीं होती
तन्हाइयों की कोई उम्र नहीं होती।
बहुत दिलकश है, शहर मेरा लेकिन
मेरे हाल की उसको ख़बर नहीं होती।
उतर गया नशा, गमे फ़िराक का अब
दर्द की दिल में, अब गुज़र नहीं होती।
दहक उठता था बदन, जिसे देख कर
छूने से भी उसके अब सिहर नहीं होती।
घेरे हुए रहते हो, मुझे हर वक्त ही क्यों
सच कहें,मुहब्बत इस क़दर नहीं होती।
ख़ास खुशबु से, महक उठती महफ़िल
ख़ुदकुशी दिल ने, की अगर नहीं होती।






Tuesday, June 26, 2012

अपनी तस्वीर ,ख़ुद ही बनाना सीखो
ख़ुद की पीठ, ख़ुद थपथपाना सीखो।
दुनिया को बिल्कुल फ़ुरसत नहीं है
अपने जश्न ,ख़ुद ही मनाना सीखो।
मुश्किलें तो हर क़दम पर ही आएँगी
बस हौसलों को बुलंद बनाना सीखो।
गिर गये तो मज़ाक बनाएगी बहुत
दुनिया को क़दमों पर झुकाना सीखो।
कामयाबी का अपनी परचम लहराके
खुशबुओं को अपनी ही, उड़ाना सीखो।





Monday, June 25, 2012

उनके इंतज़ार का, हर एक पल मंहगा था
हर ख़्वाब मैंने उस वक्त, देखा सुनहरा था।
दीवानगी-ए-शौक मेरा ,मुझसे न पूछ दोस्त
दिल के बहाव का वह जाने कैसा जज़्बा था।
मेरे महबूब मुझसे मिलकर ऐसे पेश आये
जैसे उनकी रूह का मैं भी कोई हिस्सा था।
तश्नगी मेरे दिल की, कभी खत्म नहीं हुई
जाने आबे हयात का वह कैसा दरिया था।
मिलता नहीं कुछ उसकी रहमत से ज्यादा
मेरा तो सदा से बस एक यही नज़रिया था।
मेरी बंदगी भी दुनिया-ए-मिसाल हो गई
मेरे मशहूर होने का, जैसे वो ही ज़रिया था।





Friday, June 22, 2012

जाने को थे कि, तभी बरसात हो गई
खुलके दिल की दिल से फिर बात हो गई।
चाँद भी झांकता रहा, बादलों की ओट से
कितनी ख़ुशनुमा,वही फिर रात हो गई।
तश्नगी पहुँच गई लबों की जाम तक
बेख़ुदी ही रूह की भी सौगात हो गई।
जुल्फें तराशता रहा फिर मैं भी शौक़ से
कुछ तो, नई सी यह करामात हो गई।
दिल ने तमन्ना की थी जिसकी बरसों से
बड़ी ही हसीन वो एक मुलाक़ात हो गई।

Thursday, June 21, 2012

जो दिल में रहते हैं ,पास क्या वो दूर क्या
चाँद के रु-ब-रु कोई ,लगता है हूर क्या।
कितनी बार की हैं बातें, मैंने भी चाँद से
छलका है मेरे चेहरे भी ,कभी नूर क्या।
इस मुहाने पर हैं ,कभी उस मुहाने पर
छाया रहता है दिल पर जाने सरूर क्या।
बस एक हवा के झोंके से हम हिल गये
जाने क्या रज़ा है उसकी,उसे मंज़ूर क्या।
काले हो जाते हैं, चाँद, सूरज ग्रहण में
मिट जाता है उनके चेहरे से, नूर क्या।
ख्यालों में जब किसी के आते हैं बार बार
हो जाते हैं जमाने में, यूं ही मशहूर क्या।
बेवज़ह की उदासी को दिल से न लगाना
है बहार को खिजां में रहना, मंज़ूर क्या।











Wednesday, June 20, 2012

ज़िन्दगी बहता पानी है ,बहने दो उसे
अपना रास्ता ,ख़ुद ही ढूँढने दो उसे।
बिना लहरों के समन्दर फट जायेगा
जी खोल कर के ही, मचलने दो उसे।
नदी के अन्दर भी, एक नदी बहती है
रफ़्ता रफ़्ता समंदर से मिलने दो उसे।
घर किनारे टूट करवरना ढह जायेंगे
उफ़न कर, कभी न बिखरने दो उसे।
चाँद को भी जरूरत होती है चाँद की
अपनी चांदनी को ख़ुद चुनने दो उसे।
वक्त आदमी को काट ही डालता है
कभी, तन्हाइयों में न कटने दो उसे ।




Monday, June 18, 2012

तुम से मिलकर, तुम को छूना अच्छा लगता है
दिल पर यह एहसान करना, अच्छा लगता है।
लबों की लाली से या नैनों की मस्ती से कभी
चंद बूंदे मुहब्बत की चखना ,अच्छा लगता है।
लाख छिप कर के रहे, लुभावने चेहरे , पर्दों में
कातिल को कातिल ही कहना अच्छा लगता है।
देखे हैं शमशीर दस्त ,जांबाज़ बहुत से हमने
ख़ुद को ख़ुद में ढाले रखना, अच्छा लगता है।
तड़पाता है दर्द-ए- जिगर ,जब जीने नहीं देता
पुराना ज़ख्म कुरेद के सिलना अच्छा लगता है।
ठहरी हैं हज़ार ख्वाहिशें ,इस नन्हे से दिल में
मगर फिर भी सपने देखना, अच्छा लगता है।





Friday, June 15, 2012

रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ जुदा हो गई
खुद-बुलंदी की राख़ जमा हो गई।
लौटकर न आये वे लम्हे फिर कभी
और ज़िन्दगी बड़ी ही तन्हा हो गई।
ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर
खुदमुख्तारी शहर की हवा हो गई।
कैसे गुज़री शबे-फ़िराक़, ये न पूछ
मेरे लिए तो मुहब्बत तुहफ़ा हो गई।
इस क़दर बढ़ी दीवानगी -ए -शौक़
मिलने की आस भी, दुआ हो गई।
ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है
ग़लत, ठीक में फर्क़ बता देती है।
बदी पर उतर आती है मगर जब
मज़ाक भी बहुत बड़ा बना देती है।
जब देती है, दिल खोलकर देती है
मुफ़लिसी का वरना तांता लगा देती है।
पहाड़ों पर जाने का जब मन होता है
सहरा का वह रास्ता दिखा देती है।
सवाल तो चंद घड़ियों का होता है
मगर ता-उम्र का रोग लगा देती है।
सुकून से जब भी दम लेने को होते हैं
बे-इल्म सफ़र नाकाम बना देती है।
उस रंग से सिंगार नहीं करती कभी
जिस रंग के कपडे पहना जाती है।

Tuesday, June 12, 2012

मुहब्बत में सवाल-ओ-जव़ाब नहीं होते
कागज़ों पर सजे कभी ख़्वाब नहीं होते।
तुम्हे देखता रहता मैं, फुरसत से, चैन से
ज़िन्दगी में अगर इतने अज़ाब नहीं होते।
लम्ह-ए-विसाल की कीमत क्या लगायें
इलाका-ए-मुहब्बत में मोलभाव नहीं होते।
हमको अँधेरी रातों में रहने की आदत है
हर रात तो दीदार-ए-महताब नहीं होते।
वफ़ा,ह्या,दुआ महकते झोंके हैं प्यार के
गले लगने को सब मगर बेताब नहीं होते।
बजते रहते हैं साज़, बंद कमरे में अकसर
दर्द के ही बेवज़ह हमसे हिसाब नहीं होते।




Thursday, June 7, 2012

हम एक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर ज़ानिब महका लेते हैं।
जाने फिर मोहलत मिले या न मिले
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं।
घाव पुराने फिर से हरे न हो जाएँ
रोज़ ख़ुद ही मरहम लगा लेते हैं।
हज़ारों लुभावने चेहरे मिलते हैं
हम तस्वीर से दिल बहला लेते हैं।
हर एक का दर्द अपने सीने पर हम
बिला तकल्लुफ़ के आज़मा लेते हैं।
खुदाई लुटाने को जब ख़ुदा कहता है
उसकी अदालत में सर झुका लेते हैं।





Tuesday, June 5, 2012

---- पर्यावरण दिवस पर विशेष------
हवा पानी जंगल सब को बचाना है
इन ही के दम पर सारा जमाना है।
इनके मजबूर ख़ामोश दर्द को हमे
सारी दुनिया की नज़रों में लाना है।
मौसम बदलते रहें फसलें उगती रहें
ऐसा ही कोई हमें क़दम उठाना है।
पेड़ फलदार लगाकर जगह जगह
गुलमोहर,नीम को भी तो बचाना है।
पर्यावरण को बचाने की दिशा में हमें
पर्यावरण अनुकूल जीवन अपनाना है।

Monday, June 4, 2012

महफ़िल में सब से खुबसूरत हम नज़र आते
आईने के सामने अगर, ढंग से संवर आते।
होश उड़ जाते सब के ही, वह चाँद देख कर
सितारे भी आसमान से जमीं पर उतर आते।
देखकर के सुर्खी ,गोरे गुलाबी रुखसारों की
गुलमोहर भी नए रंग में दहके नज़र आते।
वहशतें सब दिलों की, हद से गुज़र जाती
ख्वाहिशों के समंदर ,बदन में उतर आते।
निसार हम पर मुहब्बत का हर कतरा होता
हम चाहतों से हर दिल मालामाल कर आते।
उन लम्हों में क़ायनात भी सारी संवर जाती
अपनी खूबसूरती सबकी हम नज़र कर आते।
तोहफ़े तारीफ़ों के हमें मिल जाते इतने कि
फेरहिस्त उनकी पढ़कर बड़े खुश्नज़र आते।