Wednesday, January 16, 2013

अंधों के शहर में आइना न मिलेगा
पत्थरों के शहर में शीशा न मिलेगा !
जितनी भी पीनी है पी ले तू ओक़ से
यहाँ तुझको कोई पैमाना न मिलेगा !
जाने क्या सोचा करता है, हर वक्त
किसी पल भी वो अकेला न मिलेगा !
देख ली तुमने अगर तस्वीर हमारी
दिल कहीं और फिर लगा न मिलेगा !
हाथ थामलूँ या तेरी पेशानी चूमलूं
बार बार ऐसा तो मौका न मिलेगा !
अज़ब आलम है मेरी बेचारगी का
मुझ जैसा कोई बावला न मिलेगा !
मन कर रहा है, तुझे शुक्रिया कहूं
तुझ जैसा शख्स दूसरा न मिलेगा !
जिंदगी के दिन थोड़े से ही बचे हैं
क्या खबर थी हमे ख़ुदा न मिलेगा !

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