Friday, February 1, 2013

मन लगा यार फ़कीरी में
क्या रखा दुनियादारी में !
कुछ साथ नहीं ले जायेगा
क्या रखा चोरा चारी में !
वो गुलाब बख्शिश में देते हैं
जब भी मिलते हैं बिमारी में !
फ़िर हिसाब फूलों का लेते हैं
वो ज़ख्मों की गुलकारी में !
किस किस को समझाओगे
कुछ नहीं रखा लाचारी में !
धूल उड़ाता ही गुज़र गया
तो क्या रखा फनकारी में !
मैं झुककर सबसे मिलता हूँ
कुछ दम है मेरी खुद्दारी में !

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