Monday, February 4, 2013

ग़मों की भी अब किस्मत बदलनी चाहिए
ज़िस्म से दुख की पीड़ा निकलनी चाहिए !
दर्द की इन्तिहा हो गई है सीने में अब तो
कैसे भी हो ज़ख्मों की सूरत बदलनी चाहिए !
तमाम हिम्मतें जमा की कुछ कहने के लिए
दिल की बात जुबां से तो निकलनी चाहिए !
हम पर पाबंदी है बे नक़ाब करने की उन्हें
कुछ ख़ता हवाओं को भी करनी चाहिए !
वक्त जो गुज़र गया, गुज़रना था वैसे ही
सफ़र पर चलने की तैयारी रखनी चाहिए !
फ़र्क कुछ भी नहीं मंदिर मस्ज़िद गुर्दवारे में
कैसे भी हो बीच की दीवार गिरनी चाहिए !

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