Wednesday, March 13, 2013

मेरे ग़मों का क़यामत नाम रख दो
आंसुओं का शराफ़त नाम रख दो !
सर पे छत नहीं, तन पे पैरहन नहीं
मज़बूरियों का हसरत नाम रख दो !
पोर पोर में ही जला करती है जो
उस आग का बग़ावत नाम रख दो !
बहुत सारे ज़ख्म दे कर चला गया
दोस्ती का अदावत नाम रख दो !
फ़ुरसत ही नहीं है मुझे ख़ुद से अब
तन्हाई का मसरूफ़ियत नाम रख दो !
खो दिया है मैंने पा कर जिसको
उस बला का चाहत नाम रख दो !

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