Friday, June 21, 2013

फूल भी तो कभी पत्थर का काम करते हैं
नाखून पैने हों तो खंज़र का काम करते हैं !
कौन मानेगा मगर सोलह आने सच है यह
सीना चीर कर जिंदगी को तमाम करते हैं !
रोज़ मेरी दहलीज़ पर रख जाते हैं, पत्थर
मैं सोचता हूँ वो इसी तरह सलाम करते हैं !
आज के दौर में लोग इस तरह से मिलते हैं
अकीदत रखते हैं दोस्ती का नाम करते हैं !
कुछ ऐसे भी तो किरदार हैं इस जमाने में
झुलसती धुप में भी साए का काम करते हैं !
और ऐसे भी कुछ लोग हैं इसी जमाने में
खरीदते कुछ नहीं पर मोल तमाम करते हैं
ग़ुम रहते हैं हम तो सवालों के जवाब में
वो खाली बैठे ही  सुबह से शाम करते  हैं !

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