Thursday, September 19, 2013

आज़ फ़िर  उसी शाम की  तलाश है
आज़ फ़िर मुझे मक़ाम की तलाश है।
अपनी खुश्बु को हिसाब मत दे मुझे
आज़ मुझको मेरे दाम की तलाश है।
शराफ़तो से वह राह पर नहीं आयेंगे
फ़िर से किसी इल्ज़ाम की तलाश है।
निकल नहीं पाए क़द से बाहर कभी
झूठी शान को  गुलाम की तलाश है।
कान पक गये सुनते सुनते अब यही
हमको  सख्त निज़ाम की तलाश है।
होठों का तबस्सुम भी ये कह रहा है
तिश्नगी को फ़िर ज़ाम की तलाश है।
जिसके दम पर दुनिया सारी टिकी है
उसे  भी तो  एहतिराम  की तलाश है।



 

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