Saturday, October 19, 2013

नज़र में रह कर भी नज़र में नहीं
गुज़र अब मेरी उसके घर में नहीं।
मैंने तो सिलसिला रखा था उससे
उस की चाहत, मेरे असर में नहीं।
दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
अपनों  के तो, मैं बराबर  में नहीं।
पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
अब आइना कोई  मेरे घर में नहीं।
बहुत खुश था मैं तो सोच कर यह
मुझ से अच्छा सारे शहर में नहीं।
मगर मुझ में कुछ टूटने लगा अब
अब वो दम इस मुसाफिर में नहीं।


 

1 comment:

  1. दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
    अपनों के तो, मैं बराबर में नहीं।
    पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
    अब आइना कोई मेरे घर में नहीं।

    बहुत बढिया ।

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