Friday, May 23, 2014

हम अपने गुमान में कब तक रहते
दूसरे के मक़ान  में कब तक रहते।
एक दिन ज़मीन पर आना ही  था
हम  आसमान में कब तक रहते।
दिल में नफरतों का समंदर लेकर
उनके दरमियान में कब तक रहते।
 रास न आई हवाओं  की सवारी
हम ऊँची उड़ान में कब तक रहते।
बहाव हवाओं का इतना तेज़ था
परदे  दरमियान में कब तक रहते।
कभी महकते थे  संग में फूलों की
ख़ुश्बु ए बागान में कब तक रहते।
दिल में भी  शोर शराबा बहुत था
तन्हां  बियाबान में कब तक रहते।
बहुत लिया सब्र का इम्तिहान हमारे
हर वक़्त इम्तिहान में कब तक रहते।
बच्चे का सा बिगड़ा दिल है अपना
किसी के एहसान में कब तक रहते। 

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