Friday, May 9, 2014

सदियां गुज़र गई उन्हे वार करते
किस किस पर हम एतबार करते।
खरा न उतरा कोई अपने वादे पर
इश्क़ का हम  कैसे इज़हार करते।
बस्ती वही है लोग भी सब वही हैं
दिल को हम कितना बेक़रार करते।
आदत कहूं लत कहूं य बेबसी इसे
उम्र गुज़र गई अपनी तक़रार करते।
तस्वीरों के दाग़ उभर आया करते हैं
आईने को हम ही क्यूँ दाग़दार करते।
सिखा  दिया ज़माने ने बेअसर रहना
वरना  दुनिया  हम ही गुलज़ार करते।
आँखों में इंतज़ार का मंज़र रह गया
ज़िंदगी को कितना हम दुशवार करते।
खाते हैं क़समें भी हम बहुत ही कम
वो कहते हैं यूं तो नहीं इज़हार करते।
मेरी भी सुन लेगा कभी तो ख़ुदा भी
तमन्नाओं को नहीं हम बीमार करते।

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