Thursday, August 7, 2014

खुशबु बिकने लगी जब से  बाज़ारों में
नाम लिखवा दिया हमने खरीदारों में।
ख़बर छप गई सुबह  जब अख़बारों में
खलबली सी मच गई मेरे सब यारों में।
टुकड़े टुकड़े होकर ढह गया मक़ान वह
सपने सुनहरे सजे थे जिसके आसारों में।
खता तेरी थी न ही खता मेरी थी  कभी
मज़ा फिर भी आता था उन तक़रारों में।
शर्त लगाते हैं तूफानों से तो अब भी हम
जान बहुत है अब भी दिल की दीवारों में।
मेरे पूजते पूजते ही देवता बन गया वह
कोई तो हुनर होगा हम जैसे फ़नकारों में। 
  

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