Saturday, September 13, 2014

जब तक दिल न था सीने में
बड़ा मज़ा आता था जीने में।
होश संभाला जब से दिल ने
घुट के रह गया बस सीने में।
हाल दिल का फिर यह देखा
सुराख़ रिसते ज्यूं सफ़ीने में।
उम्र गुज़र गई फ़िर तो सारी
बस ज़ख्मों को ही  सीने  में।
चाँद की तरह जगमगाये हम
कभी धूप में नहाये पसीने में।
मेहनत से कभी डरे नहीं हम
ख़ुश्बू सी भी  आई पसीने में।
वक़्त से कभी  दिल से लड़ते  
हम चढ़ते चले गए ज़ीने  में।  

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