Thursday, March 20, 2014

सुबह सवेरे हम ईमानदार होते हैं
दिन के वक़्त हम रोज़गार होते हैं।
बदलता रहता है क़िरदार हमारा
शाम ढले हम घर परिवार होते हैं।
और दिन हमको फ़ुर्सत नहीं होती
छुट्टी के दिन हम गुलज़ार होते हैं।
भीड़ से जब, छंट जाते हैं हम तो
वक़्त की फ़िर हम रफ्तार होते हैं।
चाहत , वफ़ा , दोस्ती , आशिक़ी
इन रंगों के फिर तलबगार होते हैं।