Monday, March 23, 2015

इश्क़ का कभी कोई  मेयार नहीं होता
तराज़ू से तौलकर भी प्यार नहीं होता।
लम्हे भर को ही प्यार माँगा था उधार
छोड़ गया  खुशबु  ऐतबार नहीं होता।
हंसने दे लिपटकर मुझे अपने साये से
मेरा ग़म अब ग़म में शुमार नहीं होता।
अब न कोई आरज़ू न हसरत दिल में
ग़नीमत है कि दिल बेज़ार नहीं होता।
बिना  मांगे मिलती हैं  नेमतें गम की
मुसीबत का कोई तलबगार नहीं होता।
ऐसा भी वक़्त था कोई छोटा न बड़ा था
इबादत की तरह अब प्यार नहीं होता।
प्यार जैसी खूबसूरत कोई शय नहीं है
इससे खता हो जाए एतबार नहीं होता।
तौबा की खैर क्यों  मनाएं  हम ज़नाब 
दो घूँट पीने से कोई गुनहगार नहीं होता। 

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