Wednesday, April 15, 2015

हुस्न ढल गया  ग़ुरूर अभी बाक़ी है
नशा उत्तर गया सुरूर अभी बाक़ी है।
आँधियों  ने बगावत की  चली  गई
हवाओं में  गर्दे सफ़र अभी बाक़ी है।
इश्क़ की नदी तक तो पहुँच गए हम
उतरने का उसमे  हुनर अभी बाक़ी है।
जो मिला तेरा ही पता  पूछता मिला
चेहरे पे ज़ख्मों का नूर अभी बाक़ी है।
बहते हुए आंसू  थम न सके अब तक
चाह टूटने की किस क़दर अभी बाक़ी है।
ये आसमां जिसका है ज़हाँ जिसका है
बिखरने का उसके मंज़र अभी बाक़ी है।
न आया इश्क़ ही करना  न आया हमें
हद से गुजरने का सफ़र अभी बाक़ी है। 

No comments:

Post a Comment