Monday, May 4, 2015

साक़िया न आज बंदिश पीने पर मेरे लगा
आज शराबे हुस्न में छलका नशा कुछ और है
छलक रहा है ज़ामे इश्क़ आज़ तेरी आँखों में
आज़ इन आँखों से पीने का मज़ा कुछ और है
ख़ूब से भी  ख़ूबतर है रुए -हयात मेरी आज़
आज़ तेरी पिलाने की भी तो अदा कुछ और है
लम्हा लम्हा बिखर रहा हूँ  आज़ तेरे पहलू में
आज़ मेरे सुरूर का अंदाज़ नया कुछ और है
आज़ मेरे साक़ी ने इठलाके दिया मुझे ज़ाम
आज़ दस्तूरे इश्क़  मस्ती ऐ ह्या कुछ और है  

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