Saturday, August 29, 2015

इश्क़ में गिले शिकवे अच्छे नहीं लगते 
हमें एहसान उनके  अच्छे  नहीं लगते। 

समंदर प्यासा प्यासा  देखा है जब से 
 दरिया शांत बहते अच्छे  नहीं लगते। 

उनकी अदाओं का शहर ही क़ायल है 
हम  हाल  पूछते  अच्छे  नहीं लगते। 

हवाओं  चिरागों  को  छोड़ दो  तन्हा 
चराग़े दिल बुझते अच्छे  नहीं लगते। 

तसल्लियों से  क़र्ज़  कैसे  चुकाओगे 
बार बार वादे करते अच्छे नहीं लगते। 

उदासियाँ नई अब महक रही हैं अंदर 
अब ज़ख़्म पुराने वे अच्छे नहीं लगते।  

लोभ रहा न मन में, न मोह रहा अब 
हम बेवफ़ाई करते अच्छे नहीं लगते। 

चलते चलते  पैर में ही मोच आ गई
लंगड़ाके चलते हुए अच्छे नहीं लगते। 


जब से जाना  ख़ुदा दिल में  बसता है 
अब पत्थर  पूजते  अच्छे नहीं लगते। 

चाँद चौदहवीं का दिल में ही रहता है 
सूरज को ये कहते अच्छे नहीं लगते। 

अब न आएगा वह ज़माना  लौटकर 
हरकतें वैसी करते अच्छे नहीं लगते। 



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