Tuesday, September 29, 2015

ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई 
या ग़मों  को मेरी ही उम्र लग गई। 

दिन दो चार मांगे थे जीने के लिए 
मौत को पहले ही  ख़बर लग गई।

बेहद ही उदास थे रात में लोग हम
आँखे तर थी फिर भी तो लग गई। 

यह पूछो वक़्त से शायद वह बताये 
आग़ तो लगनी थी किधर लग गई। 

दर्द छिपाकर रक्खा था दिल में तेरा 
इसकी भी दुनिया को खबर लग गई। 

ज़िन्दगी भी वफ़ा न कर सकी कभी 
मौत की उसको भी  नज़र लग गई। 

एकदम  चूम लिए होंठ  मैंने भी तेरे
मुझको भी तो हवाए शहर लग गई।  




  

No comments:

Post a Comment