Saturday, October 17, 2015

एक दिल हसरतें हज़ार क्या करते 
देते नहीं खुद को क़रार क्या करते। 

एक एक पल कटा हज़ार लम्हों में 
यह मंहगी ज़िंदगी यार क्या करते। 

आंच देने लगी वह नरम बाहें हमें  
हम जलते हुए  अंगार क्या करते।

आंसुओं से ही धोने लगे चेहरा अब    
इतने हो गए थे बीमार क्या करते।  

लुट गए  मुहब्बत के नाम पर हम 
ऐसा  भी विसाले  यार क्या करते। 

एक दिल ही न संभल सका हम से
हम चाँद सा रु ए निगार क्या करते। 

तज़ुर्बा नहीं था ज़िंदगी का हम को 
हम अज़नबी का ऐतबार क्या करते।  

चेहरा वही रंगत वही आदतें भी वही 
हवा ही ताज़ा ख़ुशगवार क्या करते।

टेढ़ी हो गई  थी उसे तोड़ना ही पड़ा  
गिरने को थी वह दिवार क्या करते।  
विसाले यार -यार से मिलन 
रु ए निगार -यार का चेहरा 

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