Sunday, November 1, 2015

ज़िंदगी तेरे लिए भी अज़नबी सी थी 
ज़िंदगी मेरे लिए भी  इक पहेली थी। 

मोहरे प्यादे वज़ीर की चालें तय थी 
बिसात इनकी पहले से ही बिछी थी। 

मेरे सीने से लगके सोया था मेरा दर्द 
महक़ इस में तेरी सांसो की बसी थी। 

उसीकी ज़ुस्तज़ु हमें उदास करती है  
जिसकी आरज़ू इस दिल में रहती थी। 

जिससे मिलने गए हम सादा दिल लिए 
उसने ही मेरे ज़ख्मों की तिज़ारत की थी। 

मिला वो आज तो हंसकर के यह बोला 
मैंने तो बस ज़रा सी चुटकी ही ली थी। 

चेहरा ही तो पहचान है आदमी की भी  
उसने बदलने की इसे  कोशिश की थी। 

कल बेहतर थे आज लाखों में शुमार हैं 
इस के लिए हमने बड़ी  मेहनत की थी। 

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