Tuesday, November 24, 2015

आईने ने  मेरे बहुत खूबसूरत होने की गवाही दी थी 
कोई मुझको देखा करे मैंने किसी को हक़ ये न दिया। 
तर्क़े तअल्लुक़ भी यह दिल किसी से कर न सका था 
मेरे ग़ुरूर ने ही मुझको किसी आँख में रहने न दिया। 

रह रह कर के वो कई सिलसिले याद आ रहे हैं आज 
काश भूले से ही हम किसी महफ़िल में रह लिए होते।
आज़ वक़्त ही वक़्त है हम से काटे से भी नहीं कटता
कभी फुर्सत के लम्हों में उनको अपना कह लिए होते।   

No comments:

Post a Comment