Friday, November 27, 2015

इबादतों का  नया सिलसिला हो गया 
संग जो भी तराशा वही  ख़ुदा हो गया। 

यक़ीनन तेरा अक़्स भी दिल में मेरे था 
इस बहाने उसका भी  सज़दा हो गया।

जब भी याद तुमने मुझे दिल से किया 
दिल का मौसम भी खुशनुमा हो गया। 

 निशानी तेरी संभाल कर रखी है मैंने 
लगाव उस से बहुत ही  गहरा हो गया। 

आदत  तुम को मेरी  जो ना पसन्द थी
दायरा अब उस का भी कम सा हो गया। 

इतना भी न था मेरी तन्हाई का फैलाव 
सारे जहाँ में ही जिसका चरचा  हो गया। 

पहले हंसी आती थी अपने हर  हाल पर 
अब ज़िंदगी का मुझको तजुरबा हो गया। 

मुझे भी अब एक नए गम की ज़रूरत है 
दर्द ही अब जीने का सिलसिला हो गया। 

ज़िंदगी अब तो इज़ाजत दे दे तू भी मुझे 
देख ले मैं कैसा था अब मैं क्या हो गया। 





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