Saturday, December 26, 2015

कभी दिल हमारा तम ए ख़ाम था 
हमारी नज़र में मये गुल्फ़ाम  था। 
उनको शिकायत रही हमसे सदा  
उनकी नज़र में तो वो नाक़ाम था।   
गम नहीं था पास में जब दिल के 
ग़ोशे में  उसके  बड़ा  आराम था।
अब दर्द ने उस से दोस्ती कर ली 
अब करने को उसे बहुत काम था। 
तमाशे करने लगा  अब वो  इतने  
रफ्ता रफ्ता हो गया  बदनाम था।
मुद्दत हुई यार से रु ब रु हुए अब 
मेरा तो अब भी वो एहतिशाम था।  
  तम ए खाम --अनुभव हीन , कच्चा 
  मये गुल्फ़ाम - गुलाबी शय 
  ग़ोशे  - कोने 
  एहतिशाम - वैभव , शान 

                       -सत्येन्द्र गुप्ता 

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