Saturday, June 11, 2016

हमें दोस्तो यारों के बीच रहने दो
अपनो के सहारों के बीच रहने दो
सीख जाएंगे खुद जीने का हुनर
फूलों को खारों के बीच रहने दो
जाने किस रंग मे आ जाए बहार
दिल को बंजारों के बीच रहने दो
आज का चांद फिर निकलेगा नही
उसको इन सितारों के बीच रहने दो
आज तेरी गजल का अंदाज नया है
उसे हम से यारों के बीच रहने दो
गम को भुला दिया करो हंस कर
दर्द को फनकारों के बीच रहने दो
फिर यह दिन भी न लौटेंगे कभी
बचपन को बहारों के बीच रहने दो

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete