Monday, June 27, 2016

फूलों ने हर मौसम में खिलना बंद कर दिया
खुशबूओं ने शिकवा करना बंद कर दिया
दिल तेरे लिए हमने प्राणायाम तक किया
तूने ही कायदे से धड़कना बंद कर दिया
वक्त जब से तू भी जिद्द पर आ गया अपनी
हमने भी अपनी हद में रहना बंद कर दिया
क्या कहें हिज्र अच्छा है कि विसाल अच्छा है
अब हमने मजनूं सा दिखना बंद कर दिया
अपना खून तक भी नही पहचान सके हम
शीशी में भरा था अपना लगना बंद कर दिया
मुझको देना तो अब तुम कोई दुआ मत देना
अब मैंने भी चांद सा दिखना बंद कर दिया
रोशनाई ही सूख गई है अब तो दिल की
खत हमने उनको लिखना बंद कर दिया
पानी भी अब जहर समान हो गया मेरे लिए
ड़ाकटर ने बार बार चखना बंद कर दिया
जरूरतों की सब चीजें हैं अब मेरे पास भी
अब मैंने हाय तौबा करना बंद कर दिया
सतेन्द्र गुप्ता

No comments:

Post a Comment