Sunday, December 25, 2016

एक क़तरा समंदर में गिर गया 
बला का ग़ुरूर उसमे भर गया !

पल में ही वह समंदर बन गया
इतना बड़ा सफर तय कर गया !

डूबकर उभरा मैं फिर डूब गया 
मैं झील सी आखों में उतर गया !


अरसे से जल रहा था दिल में जो 
अलाव आज चश्म तर कर गया !

मुझमें हौसला तो बड़ा बुलंद था 
अंधेरे में अपने साये से डर गया !

मत पूछो  हालते दीवानगी मेरी 
चोट गहरी थी मगर  संवर गया !

दिलेर हूं दुश्मनों के बीच बैठा हूं 
सब  के चेहरे का रंग उतर गया !

हाथ में तो  कासा लिए था मैं भी
निर्धन को वह धनवान कर गया  !
   कासा --कटोरा 
       ------सत्येंद्र गुप्ता 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-12-2016) को मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले-; चर्चामंच 2569 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete