Friday, December 30, 2016

खुली आखों से सपना देख रहे थे
हम भी पता नही क्या देख रहे थे
दूर तक निगाह लौट कर आ गई
जाने किस का रास्ता देख रहे थे
खुशबू तो मेरे ही भीतर बसी थी
नाहक  उसका रस्ता देख रहे थे
आज आइना देख जाने क्यूं लगा
तेरा ही चेहरा जाबजा देख रहे थे
मेरे चेहरे पर ये नूर तेरा ही तो था
कि जैसे चांद ईद का देख रहे थे
फिर कुछ यादें वह ताजा हो गई
हम जैसे कोई करिश्मा देख रहे थे 

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