Saturday, January 7, 2017

यादों का हमने शहर बसा रखा है
तनहाईयों में तहलका मचा रखा है
उनका दर्द सीने से लगा कर अपने
हमने उनसे तआल्लुक बना रखा है
तनहाईयां ही कहीं बगावत न कर दें
खुशबूओं को भी हमने बुला रखा है
यह इश्क़ कहीं बदनाम न हो जाए
दिल के दर्द को ही दवा बना रखा है
किसी ने जख्म दिया किसी ने फूल
सब को मैंने करीने से सजा रखा है
जिंदगी शर्तो पर भी नही जी जाती
चिराग तूफान में भी जला रखा है
मेरे दर्द को गजल मत समझ दोस्त
मैंने तो बस काफिया मिला रखा है
------सत्येंद्र गुप्ता

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