Monday, December 4, 2017

वो शोख़ियां तबस्सुम वो कहकहे न रहे 
मिलने के भी अब तो   सिलसिले न रहे। 

मेरे ख़्याल की दुनिया में तुम मेरे पास थे 
हकीकत में तुम कभी  मेरे बनके न रहे। 

वह चीज़  जिसे हसरत से  देखते थे हम 
हुस्न  फरेब था वह , उसके जलवे न रहे। 

तुमने  जिन ग़मों से  नवाज़ा था  मुझको 
वह बेमिसाल गम भी तो अब मेरे न रहे। 

अज़ब है इस दुनिया  का भी चलन यारों 
ज़रूरत के वक़्त भी तुम कभी मेरे न रहे। 

मेरी उम्मीद मिट गई अगर मिटने भी दो 
वो होली, वो  दिवाली, वो  दशहरे  न रहे। 

मुझे खबर है  ज़िंदगी की आस तुम्ही हो  
अब अपने लख्ते  ज़िगर भी अपने न रहे। 

        -------- सत्येंद्र गुप्ता 

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