Sunday, January 7, 2018

वक़्त वह मौसम भी कितना सुहाना था
खुशियों ने बुना दिल का ताना बाना था
इश्क पर लिखी थी मैंने भी तो किताब
मेरी आशिकी का भी वो ही जमाना था
सारी मस्ती तेरी उन आँखों की ही थी
मेरे लिए तो जैसे वह ही मैखाना था
याद है अंगडाई लेने की वो अदा तेरी
तेरे पीछे आना तो वह इक बहाना था
जिसमें अपनी सूरत भी अजनबी लगे
तूने मुझे दिया घिसा आईना पुराना था
जिंदगी जाने क्या क्या रंग दिखाती है
लौट कर तूने भी तो वापस जाना था
सुना है आज वह जड़ से ही हिल गया
गिर गया शज़र ही वह जो पुराना था

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