Friday, January 19, 2018

यारियां निभाने का वक़्त न मिला
दूरियां घटाने का वक़्त न मिला।
भाग दौड़ में ही गुज़र गई ज़िंदगी
ज़रा भी सुस्ताने का वक़्त न मिला।
सफर जो भी कटना था कट ही गया
सिलसिले बनाने का वक़्त न मिला।
ज़रा सी बात पर ही जो रूठ गए थे
फ़िर उन्हें मनाने को वक़्त न मिला।
जिससे जीते हार भी उसी से मान ली
हाले दिल सुनाने का वक़्त न मिला।
दिल की दीवार पर सीलन है ग़म की
कभी धूप दिखाने का वक़्त न मिला।
घुट कर रह जाएंगी ये तन्हाइयां मेरी
ख़ुद को ही रिझाने का वक़्त न मिला।
कुछ तो ऐसा हो कि मैं ज़िंदा रह सकूं
मुक़द्दर आज़माने का वक़्त न मिला।

No comments:

Post a Comment