Monday, March 5, 2018

दर्द से दिल की हो रही थी सगाई
बीत गई रात सारी नींद नहीं आई
चाँद भी छत पर खड़ा देख रहा था
चाँदनी भी थी शबनम में नहाई
संवारते हैं जिसे हम अपने हाथों से
वही दे जाता है हमको दर्दे जुदाई
रहिये ऐसी जगह जहां कोई नहीं हो
रास आने लगी हमको भी तन्हाई
थाम दी है हमने भी रफ़्तारे जिंदगी
अब महकती नहीं मेरी भी अंगडाई
रात ने जाना था वह तो चली ही गई
तकिये के नीचे छोड़ गई दर्दे परछाई

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